जिन्दगी की कश्मकश मे क्यु ना थोड़ा जीया जाए....

Started by Shraddha R. Chandangir, November 14, 2014, 12:36:08 AM

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Shraddha R. Chandangir

जिन्दगी की कश्मकश मे क्यु ना थोड़ा जीया जाए
दुख की इन कम्बलो को, मीलके आज सीया जाए।

टुटे हुए रीश्तो पे क्यु ना थोड़ा रोया जाए
प्यार का एक बीज उनमे, मीलके आज बोया जाए।

बचपन की उन यादों मे क्यु ना थोड़ा खोया जाए
आखोसे छलकते आसुओं को, बारिश मे आज भीगोया जाए।

अपनेपन के जाल में क्यु ना दुश्मनो को फसाया जाए
पुरानी नफरते भुलाकर, उनको भी आज हसाया जाए।

पचतावे की आग मे क्यु ना थोड़ा नहाया जाए
अहंकार और घमंड को, मीलके आज बहाया जाए।

एक कतरा जिंदगी का क्यु ना थोड़ा पीया जाए
जिंदगी की कश्मकश मे, मीलके आज जीया जाए।

- अनामिका
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सतिश

क्या खूब है... मै तो आपकी poems का fan बन गया..!

Shraddha R. Chandangir

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