प्रेम हे असच असतं

Started by MRS. SANJIVANI S. BHA, December 03, 2009, 01:57:47 PM

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MRS. SANJIVANI S. BHA

प्रेम  हे  असच  असतं
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क्षण एक  पुरे 

तुज्या सहवासाचा

गमे  मज  त्यात  आनंद 

अवघा  आनंद  जगल्याचा 

प्रेम  हे  असच  असतं

तुज्या  डोळ्यातले   चांदणे

मी  डोळ्यांणीस टिपते

तुज्या  प्रेमाचा  वर्षावात 

मी  चिंब  भिजते

प्रेम  हे  असच  असतं

दोन  जीवनच  मिलन  असतं 

मला  सांगा  मला  सांगा

काव्य  हे  कसा  सुचलं असत

प्रेम  हे  असस  असतं

         
सुख  दुख  विसरायचं असत

            वाळूचा  काना  सारखा

            प्रेम  हे  मोलाच   असत

            प्रेम  हे  असच  असतं
क्षणाभराचया भेटीचं  सुद्धा 

विसर  पाडायचं  नसतं

खळखळत्या  पाण्यासारखं निर्मल   

सुख  दुःखाच आंदन  द्यायचा  असत 

प्रेम  हे  असच  असतं .



सौ . संजीवनी  संजय  भाटकर



SANJIVANI S. BHATKAR