संदीप खरे ची एक अप्रतिम गज़ल

Started by gaurig, December 11, 2009, 09:28:56 AM

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gaurig

जुबा तो डरती है कहने से
पर दिल जालीम कहता है
उसके दिल में मेरी जगह पर
और ही कोई रहता है ॥ धृ ॥

बात तो करता है वोह अब भी
बात कहाँ पर बनती है
आदत से मैं सुनती हूँ
वोह आदत से जो कहता है ॥ १ ॥

दिलमें उसके अनजाने
क्या कुछ चलता रहता है
बात बधाई की होती है
और वोह आखें भरता है ॥ २ ॥

रात को वोह छुपकेसे उठकर
छतपर तारे गिनता है
देख के मेरी इक टुटासा
सपना सोया रहता है ॥ ३ ॥

दिलका क्या है,
भर जाये या उठ जाये,
एक ही बात...
जाने या अनजाने
शिशा टूटता है तो टूटता है ॥ ४ ॥

* संदीप खरे *