जुगनू जो ये मुस्कुराता, तो चांद भी जलने लगता था.....

Started by Shraddha R. Chandangir, November 24, 2014, 01:48:54 PM

Previous topic - Next topic

Shraddha R. Chandangir

बेवक्त की ऊस आंधी मे कहा ईतना दम था
मेरी तबाह जिंदगी से वो मंझर बेहद कम था।

मतलब से जो मीलते थे कुछ मतलबी थे दोस्त मेरे,
बेमतलब की यारी का वो खंजर भी कुछ नरम था।

प्यास आखिर बुझती है एक मीठे पानी के कतरे से
पर गहरे ऊस समंदर मे नजाने क्या भरम था।

जुगनू जो ये मुस्कुराता, तो चांद भी जलने लगता था
पर मेरी ईस मुस्कान के, अंदर एक जखम था।

राम के ऊस रामायण मे, वाह वाह हुई वानर की
जंगल के ऊस बंदर का ऐसाही कुछ करम था।

- अनामिका
[url="http://anamika83.blogspot.in/?m=1"]http://anamika83.blogspot.in/?m=1[/url]
.
[url="https://m.youtube.com/channel/UCdLKGqZoeBNBDUEuTBFPRkw"]https://m.youtube.com/channel/UCdLKGqZoeBNBDUEuTBFPRkw[/url]