अंजान रास्ते

Started by शिवाजी सांगळे, December 06, 2014, 12:16:40 AM

Previous topic - Next topic

शिवाजी सांगळे


अंजान रास्ते

ढुंढती है ये जींदगी
बिखरें हुये ख्वाबोंको
आये थे कभी जो
सुबह के ओंसकी तरहा।

बचपन भी नही मिला
बादलोंके छुपे चेहरे में,
हसता रहा तेरे तमाशेमें
जींदगी, जोकर की तरहा।

साया भी था कभी
साथ हमराह धुप में,
बढाता रहा वह फासला
अंजान रास्तो की तरहा।


© शिवाजी सांगळे
©शिवाजी सांगळे 🦋papillon
संपर्क: +९१ ९५४५९७६५८९