थोडासा जिने दो मुझको

Started by kshitij samarpan, March 12, 2015, 12:49:03 AM

Previous topic - Next topic

kshitij samarpan

थोडासा जिने दो मुझको
आज न जाने ,क्या याद आ रहा  है  मुझको!

जिंदगी के पीछे , भाग रहा  था मै ,
और जिन्दगी भी क्या खूब आजमा रही थी  मुझको !

रोज एक नये ख्वाब दिखा कर,
क्या खूब जिंदगी भी, जिये जा रही थी  मुझको !

ख्वाबो को पुरा करने  कि मेरी, हर एक कोशिश ,
अपनो से बहुत दूर  ले जा रही थी  मुझको !

ख्वाब तो सारे पुरे  कर लिये हे  आज ,
फिर भी, कूछ  तो कमी सी थी मुस्कुराहाट  कि मुझको !

फिर क्यू जीने को तरस रहा  था मै ,
और जिन्दगी भी क्या खूब आजमा रही थी  मुझको !

         क्षितीज समर्पण