* आजा *

Started by कवी-गणेश साळुंखे, April 05, 2015, 10:15:32 PM

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कवी-गणेश साळुंखे

आजा ओ पिया कहीसे तु आजा
रुलाने को ही सही मुझको तु आजा
इन नैनोंमे फिरसे तु समा जा
हो चाहे जो भी मेरे गुनाह
सजा उसकी सुनाने तो आजा
जियु कैसे बिन तेरे मुझको बता
करके तनहा देख युँ ना सता
दे मुझे तु अपने दर्द का पता
भरने मुझे आज अपनी बाहोमें
आजा ओ पिया कहीसे तु आजा.
कवी-गणेश साळुंखे.
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