* जवानी *

Started by कवी-गणेश साळुंखे, April 05, 2015, 10:53:21 PM

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कवी-गणेश साळुंखे

ए हसीना ना कर गुरुर
तु अपने हुस्न पर
ए हसीना ना कर गुरुर
तु अपने हुस्न पर
ढल जाती है जवानी बुढापेमे
कुछ वक्त बित जाने पर.
कवी-गणेश साळुंखे.
Mob-7715070938

तलत

जी हसन, हो आप मगन
करने मे अपना कवन
जैसा घुमता है पवन