इतर कविता
(क्रमांक-154)
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मित्र/मैत्रिणींनो,
"इतर कविता" अंतर्गत मी इतर कवींच्या कविता आपणापुढे सादर करीत आहे .
मंदिरे सुनी सुनी
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मंदिरे सुनी सुनीकुठे न दीपकाजवा
मेघवाहि श्रावणात
ये सुगंधी गारवा
रात्र सूर पेरुनी
अशी ह्ळूहळू भरे
समोरच्या धुक्यातली
उठून चालली घरे
गळ्यात शब्द गोठले
अशांतता दिसे घनी
दु:ख बांधूनी असे
क्षितिज झाकिले कुणी
एकदाच व्याकुळा
प्रतिध्वनीत हाक दे
देह कोसळून हा
नदीत मुक्त वाहू दे..
– ग्रेस
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--संकलक-सुजित बालवडकर
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(साभार आणि सौजन्य-मराठी कविता.वर्डप्रेस.कॉम)
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-----संकलन
-----श्री.अतुल एस.परब(अतुल कवीराजे)
-----दिनांक-03.03.2023-शुक्रवार.
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