Marathi Kavita : मराठी कविता

मराठी कविता | Marathi Kavita => Gambhir Kavita => Topic started by: harshal_lagwankar on December 23, 2013, 02:04:26 PM

Title: औकात
Post by: harshal_lagwankar on December 23, 2013, 02:04:26 PM
औकात
हसिंसे हसीसे आया है तू इस जमानेमें
मुफ्त का एक खिलोना है तू अपने सही मानेमे ||धृ||

ना इतरा ना घमंड कर अपने बाजुवोकि ताकद पर
मुफ्त कि सांसे भी लेनी पडती है मेहेंगी आखरी वक़्त पर
कुछ दिनो का सामा है तू अपनेहि कबाडखानेमें  ||१||
मुफ्त का एक....

छरहरा गोरा बदन नाकनक्श मतवारे है
कही सांवरी छब नयन कजरारे है
पलक झपकतेहि बहारे तबदील हो जाती है वीरानेमें ||२||
मुफ्त का एक ....

जागिरे तेरी तेरीही सल्तनते तू जहां का शाह है
औरोंके नसीब जील्लते हि जील्लते है तेरे हिस्से वाहवाहहि वाह है
असल में तेरा मका है आज किसी और के ठिकानेमें ||३||
मुफ्त का एक ....

गठरी ले कर ग्यान कि ग्यानी हुआ कश्ती पर सवार
देख खिवय्या अनपड उसे कर दिया नाकारा करार
आया पानी उफान पर ग्यानी गया हार
तैराक खिवय्या झट से हो लिया नदिया पार
शरद शर्मसार हुआ गरूर संग डूब जाने में ||४||
मुफ्त  का एक .....

शरद लागवणकर
अंधेरी  २३/१२/२०१३