Marathi Kavita : मराठी कविता

मराठी कविता | Marathi Kavita => Other Poems | इतर कविता => Topic started by: Shraddha R. Chandangir on November 16, 2014, 10:46:02 PM

Title: ईश्क की ऊस अदालत मे कुछ ऐसीही वकालत थी.....
Post by: Shraddha R. Chandangir on November 16, 2014, 10:46:02 PM
अंधेरो से राबता और उजालो से शिकायत थी
मेरी ईस तनहाई की यही एक रीवायत थी।

आझाद कीसी परींदे को कैद करलीया धोखे से
वाह रे ईनसान, तेरी भी क्या बगावत थी।

फरीश्तो की लीबास मे कुछ दरींदे थे अपने
तकदीर मेरी इतनीही, ये खुदा की इजाजत थी।

जब वक्त मेरा होगा तो लोग भी मेरे होंगे
कंबख्त ऊस वक्त की, यसी एक नजाकत थी।

बेवफा हो तो बेकसूर, वफा करनेवाला गुनहगार
ईश्क की ऊस अदालत मे, कुछ ऐसीही वकालत थी।

- अनामिका