Marathi Kavita : मराठी कविता

मराठी कविता | Marathi Kavita => Other Poems | इतर कविता => Topic started by: Kaustubh P. Wadate. on November 25, 2015, 07:31:13 PM

Title: किताबे अब बस पड़ी रहती हैं कबर्ड के अंदर...
Post by: Kaustubh P. Wadate. on November 25, 2015, 07:31:13 PM
किताबे अब बस पड़ी रहती हैं कबर्ड के अंदर...

किताबे अब बस पड़ी रहती हैं कबर्ड के अंदर,
कोई पूछता ही नहीं उन्हें, की आना हैं बाहर,
किताबे अब बस पड़ी रहती हैं कबर्ड के अंदर।

किताबोंको कोई एक यार चाहिए,
दिलसे पढ़ने वाला दिलदार चाहिए,
ऐसा कोई नहीं रेहता अब इस घर,
किताबे अब बस पड़ी रहती हैं कबर्ड के अंदर।

किताबे अब बस धूल और मिट्टीसे सजी रेहती हैं,
अब बहोत सारे लफ्ज़ अपने आपसे ही केहती हैं,
रोज रेहता हैं इन्हे भंगार में बिकने का डर,
किताबे अब बस पड़ी रहती हैं कबर्ड के अंदर।

कबर्ड के अंदर किताबोंका दम घुट रहा हैं,
उनकी हज़ारो परेशानियों को कोई जानता कहा हैं,
उनका साँस लेना भी अब मुश्किल रहा होकर,
किताबे अब बस पड़ी रहती हैं कबर्ड के अंदर।

कभी किताबें भी नवाबों की तरह घुमा करती थी,
मखमली कपड़ों के बिस्तर पर शान से सोया करती थी,
अब हालत ख़राब हैं उनकी गरीबी से रो-रोकर,
किताबे अब बस पड़ी रहती हैं कबर्ड के अंदर।

अब किताबों को ऐसेही पड़े रेहना होगा,
मोबाइल, कम्प्यूटर के ज़माने में उनका क्या कहना होगा,
हसेंगी अब किताबे बस अछा, गुजरा वक्त सोचकर,
किताबे अब बस पड़ी रहती हैं कबर्ड के अंदर।

- कौस्तुभ