Marathi Kavita : मराठी कविता

मराठी कविता | Marathi Kavita => Hindi Kavita => Topic started by: ajeetsrivastav on February 08, 2016, 06:32:32 PM

Title: भैरा
Post by: ajeetsrivastav on February 08, 2016, 06:32:32 PM
मै भौरा हू इक कठोर
पर पाने को मृदु रस फिरता
मै सुन्दर इस उपवन मे
हर मुकुल पे समरस धिरता
भ्रमर भ्रमर करता गुंजन
पर नीरवता कब मै हरता
मै तो खुद कुरुप सा हू
पर हरता हू कब मै रुचिता
मै बंधक राजीव मे हू
रात्रि पूर्ण ठोर गहता
मै समर्थ हू रंध्रन मे
पर कब पुष्प भेदन करता
मै रखता हू उसको कोमल
यह क्या है मेरी जड़ता
मै खुद हू चारन सा उसमे
पर रक्छा भी उसकी करता
तन मन हो जिससे पुलकित
वह परिमल पुस्प से मिलता
मै यह परिमल पाने को
सारा उपवन रहता फिरता
उपवन की सोभा फूलो से
जहा मनोरथ सुख मिलता
मेरा मन हो जाता हर्षित
जब ऊपवन मे पुष्प खिलता ||
जो कहता है खुद को ञानी
वह उपवन से पुस्प हरता
करता शाखा से खंडित
सुर को फिर अर्पित करता
उसकी इस निर्ममता से
पुष्प करुण क्रन्दन करता
क्या देव कभी कहते उससे
फिर क्यू हरता है कोमलता
क्या ञानी मै उसको कह दू
जो छटा मनोरम यह हरता
इससे अच्छा तो मै भौरा
बस ऊ़पर ही रहता फिरता
अब तोड़ा जाना है मुझको
यह सदा पुष्प की है चिन्ता
फिर भी हर सुऩ्दर प्रभात
वह प्रसन्नता से खिलता
वह करता है सबको मुग्धित
वायु सुगन्धित वह करता
फिर भी यह मानव की दृष्टी
क्यू उससे इतनी निस्ठुरता
क्यू निसाद सा है मानव
जो फूलो का है वध करता
जाना मैने दुर्लभ जग मे
है पुष्पो जैसी सुन्दरता
उन हाथो मे देता खुसबू
जो हाथो से उसको दलता
सुन्दरता अभिशाप है फिर
उसका यदि यह फल मिलता
पुष्प सदा उपकारी है
जिनसे औषधि है मिलता
मेरा मन हो जाता हर्षित
जब ऊपवन मे पुष्प खिलता ||