माना इस दुनिया की हिसाब से काबिल नहीं हुआ मैं
ये भी सच हैं की नजरों में मेरी, जलील नहीं हुआ मैं।
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मजबूरी के नक्षेकदम पे, चलने से खुद्दारी बेहतर थी
तनहाई को अपना लिया, पर बुजदिल नहीं हुआ मैं
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मुकद्दर से हमेशा हारकर भी, सब्र मेरा कायम हैं
दिल की तमाम हसरतों का, कातील नहीं हुआ मैं
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मोहब्बत भी मियाँ अपनी, कुछ उसूलों वाली ही रहीं
जहाँ बात मेरी अना पर आईं, तब्दील नहीं हुआ मैं।
~ अनामिका