बुरी न थी जिंदगी बस हमे ही जीना नही आया
जख्म हुए बहुत दिल पें लेकिन गम पिना न आया
वफ़ा की उम्मीद हर किसी से नही की जाती
बहुत देर हो गई जब समझ में यह आया
पुरी करते हरेक ख्वाहिश वो हमारी मगर
बेवजह वहाँ हमे सर झुकाना न आया
सिर्फ आवाज बड़ी थी जुबाँ पे हमारी
पाप दिल में कभी हमे छुपाना न आया
कैसे कहे की हमने कोशिश भी नही की
लड़ते रहे आखरी दम तक आँसू बहाना न आया
किस्मत भी हैरान रह गई थी उस दिन
जब हँसकर दुःख को हमने सीने से लगाया
©राजेश खाकरे
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