२९/५/२०१७
इश्क
ये दर्द मिठा लगता है
ना इश्क की कोई दवा है
जो पाता है सबकुछ
वो यहीं हार जाता है
मिलकर बिछडनेसे
तो एहसास बनता है
मरकर यादों मे जीना
सच बोलो तो एैसा कहां
हर किसीका नसीब होता है
लैला मजनु ,सोनी महीवाल
हिर रांझा ना हर कोई बन पाता है
दास्तांये मोहब्बतकी
तो हर कोई बयां करता है
इश्क मे जीना
इश्क में मरना
एैसा गुलिस्तां तो
दिलवालों के नसिबमे होता है
दुनिया की फिक्र ना
किसीका ए दिल मोहताज होता है
कब्रमें लिपटा मुझसे
मेरे महबुब का दामन रहता है.
##खत##
©- महेंद्र विठ्ठलराव गांगर्डे पाटील
9422909143