दूरी
ये दूरी अच्छी लगती है कभी कभी
तनहाई करीब लगती है कभी कभी
हवाओं में लिखी उन लम्हों कि यादें
लहराते झुला झुलाती है कभी कभी
घना अंधेरा और रातकी गहरी घटा
साथ भी दिया करती है कभी कभी
नम आखों में छिपी सर्द सिसकियां
खामोशी संग बोलती है कभी कभी
महिमा कियें वादों लिए कसमों कि
दूरी एहसास दिलाती है कभी कभी
©शिवाजी सांगळे 🦋
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