कोरोना कोरोना क्या तेरा केहना,
परदेसी है तू , लौट के जा ,
जिना है हमे ,थोडा रेहेम करती जा .....
मुसाफिर थे वो, जो लेके तुझे आए ,
पढाई ,जॉब के लिये आंगण तेरे आये ,
खुशियो कि लकिर झट से तुने मिटा के ,
दुःख कि दरिया मे सबको डुबा के ,
हराम किया तुने हमारा जीना ,
कोरोना कोरोना क्या तेरा केहना,
लौकडाउन का सूनके नाम ,
दिल हो गया बागबान ,
बीते दिन, बीती राते ,समज आई अब सारी बाते .
अमिरो के घर खाने -खजानो कि दिवाली थी ,
मिड्ल क्लास मे रोटी थोडी कम थी ,
गरिबो का तो पॅटर्न हि कूछ अलग था ,
रोटी बिना जिना मौत के घाट उतरणा था ,
होश तो तब आया ,जब पेशन्ट बढते गये ,
ईएमई का टेन्शन,पापा कि पेन्शिन ,
कैसे रहे 'आत्म निर्भर "ये भी करो मेंशन .
मार्च से जून बित गये महिने ,
लौकडाउन खुला तो बाहर निकले टहलने ,
सोशल डिस्टंसिन्ग ने खूब रुलाया ,
दोस्त के कँधे पर रोना भुलाया ,
खडे है हम अपनी "आत्म निर्भरता " से ,
जुदा जो हुए रिश्ते दारो से ,
जाना होगा तुझे लौट के परदेस ,
चीन हि है तेरा पर्मनंट ऍड्रेस.
- पूजा सुशील जाधव (चिऊ)