तू रुख मत
सबर कर ,रोख रे , तेरे आखो का पानी
एक दिन जरूर मोती बनके झरकेगा
अभी तो फिरार , तू खामोश रह जा
तेरी मेहनत का फल , एक दिन जरूर गरजेगा !
लोग कहते है , की तुम कमजोर है
की ना है ,तुज में कुछ समज
की ना है, तुज में कुछ शर्म
क्यों तू नदी का रोख बदलने चली
पर तुम ही हो , हो समंदर में खिला मोती
तुम ही हो ,हो पत्थर में खिला फूल!!
आखिर तुझे ही रखना होगा
इन कमजोर हातो पे यकीन
तुझे हि मापना होगा समज और शर्म में अंतर
क्यों की इतिहास हमें प्रमाण देता हे की
एक नया कर दिखलानेवारे हर किसी को
पत्थर और गारी खानी हि पडती है !!!