II होली II
निबंध क्रमांक-3
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मित्रो,
आज दिनांक-१७.०३.२०२२, गुरुवार है. "होली एक ऐसा रंगबिरंगा त्योहार है, जिस हर धर्म के लोग पूरे उत्साह और मस्ती के साथ मनाते हैं। प्यार भरे रंगों से सजा यह पर्व हर धर्म, संप्रदाय, जाति के बंधन खोलकर भाई-चारे का संदेश देता है। ". हिंदी कविताके मेरे सभी भाई-बहन, कवी-कवयित्रीयोको होली के इस पावन पर्व की अनेक हार्दिक शुभकामनाये. आईए पढते है, लेख, महत्त्व, जIनकारी, निबंध, शायरी, बधाई संदेश, शुभकामनाये एवं अन्य.
होली के विशेष पकवान
वैसे तो होली का मुख्या पकवान गुझिया होता है। लेकिन इसके साथ और भी कई मीठे पकवान बनते हैं जिनमें मालपुआ, ठंडाई, खीर, कांजी वड़ा , पूरन पोली, दही बड़ा, समोसे, दाल भरी कचौडियां आदि बनाया जाता है। सारा दिन यही पकवान ही खाए जाते हैं और आने वाले मेहमानों का स्वागत भी इन्ही पकवानों से किया जाता है।
भारत के अलग अलग राज्यों में होली के विभिन्न रूप
लट्ठमार होली
राधा जी की जन्मस्थली बरसना की होली विश्व प्रसिद्द है। यह लट्ठमार होली फाल्गुन मास की शुक्ल पक्ष की नवमी को मनाई जाती है। माना जाता है कृष्ण जी होली मानाने के लिए अपने साथी ग्वालों के साथ बरसना जाया करते थे। वहां राधा जी की सखियाँ हंसी-ठिठोली करने के लिए उन पर लाठियां बरसाया करती थीं। जिस से बचने के लिए ग्वाले लाठीयों और ढालों का प्रयोग करते थे। वही परंपरा आज भी निभाई जाती है।
नंदगांव से ग्वाल बाल होली खेलने के लिए पिचकारियों और रंगों के साथ राधा रानी के गाँव बरसना जाते हैं। वहां की औरतें अपने गाँव के आदमियों पर लाठियां नहीं बरसातीं। लाठियों के बीच में एक दूसरे के ऊपर रंग भी डाला जाता है। धूम-धाम तो ऐसी होती है कि विदेशों से लोग आते हैं बरसना की ये लट्ठमार होली देखने।
पंजाब की होली – होला मोहल्ला
होली का महत्त्व जितना हिन्दुओं में है उतना ही दूसरे धर्म में भी है लेकिन कारन भिन्न हो सकते हैं। पंजाब में होली के अगले दिन एक बहुत ही विशाल महोत्सव होता है जिसे होला मोहल्ला के नाम से जाना जाता है।
होली के रूप को बदल कर होला मोहल्ला करने के पीछे दशम गुरु गोविन्द सिंह जी का एक खास उद्देश्य था। वह कारन यह था की आनंदपुर में होली को पौरुष के प्रतीक के रूप में मनाया जाता था। इसलिए होली का नाम स्त्रीलिंग से बदल कर पुल्लिंग कर दिया गया। आनंदपुर साहिब का स्थान सिखों के लिए बहुत महत्वपूर्ण है।
होला मोहल्ला का उत्सव छः दिनों तक चलता है। जिसमे एक विशाल मेले का आयोजन होता है और उसके साथ ही निहंग अपने पौरुष और अपनी युद्ध कला का प्रदर्शन करते हैं। जुलूस तीन काले बकरों की बलि से प्रारंभ होता है। एक ही झटके से बकरे की गर्दन धड़ से अलग करके उसके मांस से 'महा प्रसाद' पका कर वितरित किया जाता है।
पांच प्यारे जुलूस का नेतृत्व करते हुए रंगों की बरसात करते हैं और जुलूस में निहंगों के अखाड़े नंगी तलवारों के करतब दिखते हुए बोले सो निहाल के नारे बुलंद करते हैं। यह जुलूस हिमाचल प्रदेश की सीमा पर बहती एक छोटी नदी चरण गंगा के तट पर समाप्त होता है।
इतना ही नहीं लोगों के विशाल लंगर का आयोजन किया जाता है। यहाँ आये हुए लोगों के लिए विशाल लंगर का आयोजन होता है। पंजाब के कोने-कोने से लोग यहाँ मेला देखने आते है। इस मेले की शुरुआत स्वयं गुरु गोबिंद सिंह जी ने की थी।
--संदीप कुमार सिंग
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(साभार एवं सौजन्य-संदर्भ-अप्रतिम ब्लॉग.कॉम)
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-----संकलन
-----श्री.अतुल एस.परब(अतुल कवीराजे)
-----दिनांक-17.03.2022-गुरुवार.