"अविराम साहित्य"
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मित्रो,
आज पढते है, श्री अविराम , इनके "अविराम साहित्य" यह ब्लॉग की एक कविता. इस कविताका शीर्षक है-"दोहे"
दोहे--
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बाती कौए, ले उड़े, चील पी गई तेल ।
बाज देश में खेलते, लुकाछिपी का खेल ।।1।।
बिना खाद पानी बढ़ा, नभ तक भ्रष्टाचार ।
सदाचार का खोदकर, फेंका खर-पतवार ।। 2।।
जनता का जीना हुआ, दो पल भी दुश्वार ।
गर्दन उनके हाथ में, जिनके हाथ कटार ।।3।।
ऊँची-ऊँची कुर्सियाँ, लिपटे काले नाग ।
डँसने पर बचना नहीं, भाग सके तो भाग ।। 4।।
--रामेश्वर काम्बोज 'हिमांशु'
(37-बी/02, रोहिणी, सेक्टर-17, नई दिल्ली-110089)
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(साभार एवं सौजन्य-संदर्भ-अविराम साहित्य.ब्लॉगस्पॉट.कॉम)
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-----संकलन
-----श्री.अतुल एस.परब(अतुल कवीराजे)
-----दिनांक-20.09.2022-मंगळवार.