Marathi Kavita : मराठी कविता

मराठी कविता | Marathi Kavita => Hindi Kavita => Topic started by: Atul Kaviraje on December 19, 2022, 09:44:40 PM

Title: साहित्यिक निबंध-निबंध क्रमांक-112-आधुनिक हिन्दी साहित्य का इतिहास
Post by: Atul Kaviraje on December 19, 2022, 09:44:40 PM
                                  "साहित्यिक निबंध"
                                  निबंध क्रमांक-112
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मित्रो,

     आईए, आज पढते है " हिंदी निबंध " इस विषय अंतर्गत, मशहूर लेखको के कुछ बहू-चर्चित "साहित्यिक निबंध." इस निबंध का विषय है-"आधुनिक हिन्दी साहित्य का इतिहास"
   
                         आधुनिक हिन्दी साहित्य का इतिहास--
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     जैनेन्द्र, अज्ञेय, यशपाल, इलाचंद्र जोशी, अमृतलाल नागर, रांगेय राघव और भगवती चरण वर्मा ने उल्लेखनीय उपन्यासों की रचना की। नागार्जुन, फणीश्वर नाथ रेणु, अमृतराय, तथा राही मासूम रज़ा ने लोकप्रिय आंचलिक उपन्यास लिखे हैं। मोहन राकेश, राजेन्द्र यादव, मन्नू भंडारी, कमलेश्वर, भीष्म साहनी, भैरव प्रसाद गुप्त, आदि ने आधुनिक भाव बोध वाले अनेक उपन्यासों और कहानियों की रचना की है। अमरकांत, निर्मल वर्मा तथा ज्ञानरंजन आदि भी नए कथा साहित्य के महत्वपूर्ण स्तंभ हैं।

     प्रसादोत्तर नाटकों के क्षेत्र में लक्ष्मीनारायण लाल, लक्ष्मीकांत वर्मा, तथा मोहन राकेश के नाम उल्लेखनीय हैं। कन्हैयालाल मिश्र प्रभाकर, रामवृक्ष बेनीपुरी तथा बनारसीदास चतुर्वेदी आदि ने संस्मरण रेखाचित्र व जीवनी आदि की रचना की है। शुक्ल जी के बाद पं हज़ारी प्रसाद द्विवेदी, नंद दुलारे वाजपेयी, नगेन्द्र, रामविलास शर्मा तथा नामवर सिंह ने हिंदी समालोचना को समृद्ध किया।

     आज गद्य की अनेक नयी विधाओं जैसे यात्रा वृत्तांत, रिपोर्ताज, रेडियो रूपक, आलेख आदि में विपुल साहित्य की रचना हो रही है और गद्य की विधाएं एक दूसरे से मिल रही हैं।

                 आधुनिक हिन्दी साहित्य में पद्य का विकास

--आधुनिक काल की कविता के विकास को निम्नलिखित धाराओं में बांट सकते हैं।

१.   नवजागरण काल (भारतेंदु युग)   १८५० ईस्वी से १९०० ईस्वी तक
२.   सुधार काल (द्विवेदी युग)   १९०० ईस्वी से १९२० ईस्वी तक
३.   छायावाद   १९२० ईस्वी से १९३६ ईस्वी तक
४.   प्रगतिवाद प्रयोगवाद   १९३६ ईस्वी से १९५३ ईस्वी तक
५.   नई कविता व समकालीन कविता   १९५३ ईस्वी से आजतक

                     नवजागरण काल (भारतेंदु युग)

     इस काल की कविता की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि यह पहली बार जन-जीवन की समस्याओं से सीधे जुड़ती है। इसमें भक्ति और श्रंगार के साथ साथ समाज सुधार की भावना भी अभिव्यक्त हुई। पारंपरिक विषयों की कविता का माध्यम ब्रजभाषा ही रही लेकिन जहां ये कविताएं नव जागरण के स्वर की अभिव्यक्ति करती हैं, वहां इनकी भाषा हिन्दी हो जाती है। कवियों में भारतेंदु हरिश्चंद्र का व्यक्तित्व प्रधान रहा। उन्हें नवजागरण का अग्रदूत कहा जाता है। प्रताप नारायण मिश्र ने हिंदी हिंदू हिंदुस्तान की वकालत की। अन्य कवियों में उपाध्याय बदरीनारायण चौधरी 'पेमघन' के नाम उल्लेखनीय हैं।

                       सुधार काल (द्विवेदी युग)

     हिंदी कविता को नया रंगरूप देने में श्रीघर पाठक का महत्वपूर्ण योगदान है। उन्हें प्रथम स्वच्छंदतावादी कवि कहा जाता है। उनकी एकांत योगी और कश्मीर सुषमा खड़ी बोली की सुप्रसिद्ध रचनाएं हैं। रामनरेश द्विवेदी ने अपने पथिक मिलन और स्वप्न महाकाव्यों में इस धारा का विकास किया। अयोध्यासिंह उपाध्याय 'हरिऔध' के प्रिय प्रवास को खड़ी बोली का पहला महाकाव्य माना गया है।

     महावीर प्रसाद द्विवेदी की प्रेरणा से मैथिलीशरण गुप्त ने खड़ी बोली में अनेक काव्यों की रचना की। इन काव्यों में भारत भारती, साकेत, जयद्रथ वध पंचवटी और जयभारत आदि उल्लेखनीय हैं। उनकी 'भारत भारती' में स्वाधीनता आंदोलन की ललकार है। राष्ट्रीय प्रेम उनकी कविताओं का प्रमुख स्वर है।

     इस काल के अन्य कवियों में सियाराम शरण गुप्त, सुभद्राकुमारी चौहान, नाथूराम शंकर शर्मा तथा गयाप्रसाद शुक्ल 'सनेही' आदि के नाम उल्लेखनीय हैं।

--पूर्णिमा वर्मन
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                      (साभार एवं सौजन्य-अभिव्यक्ती-हिंदी.ऑर्ग)
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-----संकलन
-----श्री.अतुल एस.परब(अतुल कवीराजे)
-----दिनांक-19.12.2022-सोमवार.