Marathi Kavita : मराठी कविता

मराठी कविता | Marathi Kavita => Hindi Kavita => Topic started by: Atul Kaviraje on January 22, 2023, 10:35:57 PM

Title: साहित्यशिल्पी-नवरात्रि पर विशेष आलेख श्रंखला-आलेख–5
Post by: Atul Kaviraje on January 22, 2023, 10:35:57 PM
                                      "साहित्यशिल्पी"
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मित्रो,

     आज पढते है, "साहित्यशिल्पी" शीर्षक के अंतर्गत, सद्य-परिस्थिती पर आधारित एक महत्त्वपूर्ण लेख. इस आलेख का शीर्षक है- "नवरात्रि पर विशेष आलेख श्रंखला"

नवरात्रि पर विशेष आलेख श्रंखला - देवी भद्रकाली के नाम पर है इन्द्रावती और गोदावरी नदियों का संगम- [आलेख – 5]- राजीव रंजन प्रसाद--
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     बस्तर को बूझने की पहली कड़ी है उसकी प्राणदायिनी सरिता इन्द्रावती। यह असाधारण नदी है जिसके पाटों में इतिहास और समाजशास्त्र मिलकर अपनी बस्तियाँ बसाये बैठे हैं। ओडिशा के कालाहाण्डी जिले में रामपुर युआमल के निकट डोंगरमला पहाड़ी से निकल कर इन्द्रावती नदी लगभग तीन सौ छियासी किलोमीटर की अपनी यात्रा में पूर्व से पश्चिम की ओर प्रवाहित होती है। बस्तर पठार की पश्चिमी सीमा में नदी दक्षिण की ओर मुड़ कर भद्रकाली (भोपालपट्टनम) के पास गोदावरी नदी में समाहित हो जाती है।

     भोपालपट्टन से भद्रकाली की ओर आगे बढ़ने पर कुछ ही देर में मुख्यसड़क का साथ छूट गया और पथरीली उबड़-खाबड़ सड़क ने हमारा स्वागत किया। एकाएक ऊँचाई से हमें तीव्र ढ़ाल दिखाई पड़ी जो कि चिंतावागु नदी तक पहुँचती थी। रास्ता पूरी तरह रेतीला था। उसपार जाने के लिये गाड़ी को इस नदी से हो कर ही निकलना था। यह भी किसी दक्ष वाहनचालक के बूते की ही बात थी क्योंकि एक निश्चित गति से चलाते हुए गाड़ी को नदी पार न करायी गयी तो पहियों के फँस जाने का अंदेशा था। रास्ता पूरी तरह उजाड़ और पथरीला था। भद्रकाली तक पहुँचना केवल उनके ही बूते की बात है तो यह कमर कस कर निकले हों कि अब चाहे जो हो वहाँ पहुँचना ही है। यह सड़क मार्ग भोपालपट्टनम को आन्ध्र से भी जोड़ता है। यहाँ से गुज़रने वाले इक्कादुक्का वाहन ग्रामीणों से खचाखच भरे हुए थे। इसमे कोई संदेह नहीं कि माओवादियों की सहमति और जानकारी के बिना यहाँ वाहन नहीं चल सकते थे। रास्ते में अनेक स्थानों पर सड़कों को काटे जाने तथा जानबूझ कर बाधित किये जाने के चिन्ह स्पष्ट देखे जा सकते हैं। समय समय पर माओवादियों द्वारा अपने किसी मिशन अथवा गतिविधि को अंजाम देने के लिये इन टूटी-फूटी सड़कों को भी काट दिया जाता है और इस तरह आवागमन पूरी तरह बाधित कर दिया जाता है। ये काटी गयी सड़कें फिर किसी माससून में पानी के साथ बह आती मिट्टी से खुद ही भर जायें तो ही आवागमन के लिये पुन: खुल पाती हैं। मैं बहुत खामोशी से महसूस कर रहा था कि ये मध्ययुगीन दृश्य इक्कीसवीं सदी के भारत का हिस्सा हैं। पूरे रास्ते हमे इक्का दुक्का लोग ही मिले। सड़क के किनारे खड़ी कुछ युवतियों के जूड़े में लगे फूलों के गजरे से यह बात स्पष्ट होने लगी थी कि इस क्षेत्र में बस्तर की संस्कृति पर आन्ध्र-महाराष्ट्र का संगम भी देखने को मिलने लगता है। कुछ आगे बढ़ने पर मुझे बताया गया कि बस्तर में पचास के दशक में कलेक्टर रहे आर.एस.वी.पी नरोन्हा के नाम पर यहाँ एक गाँव और तालाब भी अवस्थित है।

--राजीव रंजन प्रसाद
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                     (साभार एवं सौजन्य-संदर्भ-साहित्यशिल्पी.कॉम)
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-----संकलन
-----श्री.अतुल एस.परब(अतुल कवीराजे)
-----दिनांक-22.01.2023-रविवार.
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