बहोत जिये औरोंके लिये ,
भूले खुशीयाँ भरी जिंदगी ,
अब वक्त अपना आया तो
बोझ लगने लगी जिंदगी ॥
जब तक वो मजबूर थे ,
सहारा देती रही जिंदगी ,
अब कमजोर हम हुये ,
तनहाँईमें है ये जिंदगी ॥
जख्म मिले हजार फिरभी ,
हँसती रही यह जिंदगी ,
जख्मोंको साथ लिये अकेले,
अँधेरेमें रोती है जिंदगी ॥
बहोत कुछ खोयाँ फिरभी ,
चलती रही है ये जिंदगी ,
साथ कितनोंका कैसे छुटा ,
अब ढूँढ रही है जिंदगी ॥
न किसीसे कोई शिकायत ,
बस खामोश है ये जिंदगी ,
जब तक साँस चलती है ,
चलती रहेगी ये जिंदगी ॥
अशोक मु.रोकडे .
मुंबई .