वादे कितने किये हमने मिलकर ,
आप तो बस गये कही दूर जाकर ,
आप भूल गये निभाना अपना वादा ,
हम पछँता रहें है वादे निभाकर ॥
हम तो बस वफाँ चाहते थे मगर ,
आप तो चल दिये जख्म कई देकर ,
शाम है ऊदास और तनहाँ है हम ,
आप तो गुम हो खुशीयाँ समेटकर ॥
न जाने कैसी आँधी थी, खुशियाँ ले गयी,
न जाने कैसी राह थी, जिंदगी खो गयी ,
वक्त सारा गुजँर गया, सकून ना मिलाँ ,
न जाने कैसे जीते है, खुशियाँ खो कर ॥
इन्तजार करती ये खामोश निगाहें ,
सुनसान पडी है दूरतक ये राहें ,
ना कोई आहटऔर ना कोई निशाणी ,
कबसे बैठे बस एक आँस लेकर ॥
अशोक मु. रोकडे .
मुंबई .