जय सरस्वती माता –
प्रस्तावना:
"जय सरस्वती माता!" यह शब्द भारतीय संस्कृति और धर्म में विद्या, ज्ञान, संगीत, कला और बुद्धि की देवी सरस्वती की पूजा का प्रतीक हैं। माँ सरस्वती को ज्ञान की देवी, विद्या की देवी और संगीत की देवी के रूप में पूजा जाता है। वे भगवान ब्रह्मा की पत्नी मानी जाती हैं और उनका आशीर्वाद प्राप्त करने से जीवन में बौद्धिक उन्नति, सफलता और ज्ञान का वास होता है। उनकी पूजा विशेष रूप से छात्र-छात्राओं, विद्वानों और कलाकारों के बीच की जाती है। सरस्वती माता का चित्र सामान्यत: एक सुंदर रूप में देखा जाता है, जिसमें वे वीणा बजा रही होती हैं और उनके पास पुस्तक, कलम और मणि जैसी चीजें होती हैं, जो ज्ञान और सृजनात्मकता का प्रतीक हैं।
सरस्वती माता का स्वरूप:
सरस्वती माता का स्वरूप अत्यंत दिव्य और सौम्य होता है। वे सफेद वस्त्र पहने हुए होती हैं, जो शांति, शुद्धता और निष्कलंकता का प्रतीक हैं। उनके चार हाथ होते हैं:
वीणा: एक हाथ में वे वीणा पकड़े रहती हैं, जो संगीत और कला की देवी का प्रतीक है।
पुस्तक: दूसरे हाथ में वे एक पुस्तक पकड़े होती हैं, जो ज्ञान और विद्या का प्रतीक है।
मणि और कलम: तीसरे हाथ में मणि और कलम होती है, जो लेखक और विद्वान के ज्ञान की शक्ति का प्रतीक है।
आशीर्वाद: चौथे हाथ में वे आशीर्वाद की मुद्रा में होती हैं, जो उनके भक्तों को आशीर्वाद देने का प्रतीक है।
सरस्वती माता का वाहन हंस (राजहंस) है, जो ज्ञान, शांति और समझ का प्रतीक है। इसके अलावा, उनका सफेद रंग शुद्धता, ज्ञान और विद्या के प्रति समर्पण का प्रतीक माना जाता है।
सरस्वती माता का महत्व:
सरस्वती माता का धार्मिक और सांस्कृतिक महत्व अत्यधिक है। उनके बारे में कहा जाता है कि वे न केवल विद्या और ज्ञान की देवी हैं, बल्कि वे संगीत, कला, साहित्य, विज्ञान और अन्य सभी प्रकार के बौद्धिक कार्यों में मदद करती हैं।
उनका महत्व न केवल धार्मिक दृष्टिकोण से, बल्कि समाज की संस्कृति और प्रगति के दृष्टिकोण से भी बहुत ज्यादा है। उनके आशीर्वाद से व्यक्ति के मन में ज्ञान की अपार बृद्धि होती है और वे अपने जीवन में हर क्षेत्र में सफलता प्राप्त करते हैं।
सरस्वती माता की पूजा विधि:
सरस्वती माता की पूजा एक विशेष प्रकार से की जाती है, जिसे विशेष रूप से वसंत पंचमी के दिन आयोजित किया जाता है। वसंत पंचमी का पर्व विशेष रूप से माता सरस्वती की पूजा करने का होता है, जो बसंत ऋतु के आगमन के साथ आता है। इस दिन को "सरस्वती पूजा" या "विद्या देवी पूजा" के रूप में मनाया जाता है।
विधि: सबसे पहले पूजा स्थल को स्वच्छ किया जाता है और वहां माता सरस्वती की मूर्ति या चित्र स्थापित किया जाता है।
पूजा में ताजे फूल, दीपक, अगरबत्तियाँ, और चंदन अर्पित किया जाता है।
सरस्वती माता को विशेष रूप से पुस्तक, कलम और वीणा अर्पित की जाती है।
इस दिन विद्यार्थियों द्वारा अपनी किताबों, नोटबुक्स और कलमों को माता के चरणों में रखकर पूजा की जाती है।
सरस्वती माता को ध्यान और मंत्रोच्चारण से पूजा जाती है। खासतौर पर "ॐ सरस्वती नमः" और "ॐ ह्लीं सरस्वत्यै नमः" जैसे मंत्रों का जाप किया जाता है।
इसके बाद उन्हें प्रसाद अर्पित किया जाता है, जो आमतौर पर फल, मिठाइयाँ और अन्य शुद्ध वस्तुएं होती हैं।
संगीत और भजन: सरस्वती माता के पूजा में भजन और संगीत का भी महत्वपूर्ण स्थान है। वीणा, तबला, हारमोनियम आदि वाद्य यंत्रों के साथ पूजा अर्चना की जाती है। इसके माध्यम से भक्त माता को संगीत का आभार अर्पित करते हैं।
--संकलन
--अतुल परब
--दिनांक-08.11.2024-शुक्रवार.
===========================================