Marathi Kavita : मराठी कविता

मराठी कविता | Marathi Kavita => Hindi Kavita => Topic started by: Atul Kaviraje on December 19, 2024, 11:43:40 PM

Title: "शाम को सोफ़े पर एक आरामदायक कम्बल"
Post by: Atul Kaviraje on December 19, 2024, 11:43:40 PM
शुभ रात्रि, शुभ गुरुवार मुबारक हो

"शाम को सोफ़े पर एक आरामदायक कम्बल"

जब शाम ढलने को हो, और आकाश में हलकी सी ठंडक छा जाए,
जब सूरज की किरणें धीरे-धीरे धरती से विदा लेने लगे,
तब एक सोफ़े पर आराम से बैठ, कम्बल में लिपटने का मन करता है,
जैसे ये कम्बल न हो, बल्कि एक सुकून की चादर हो, जो हर थकान को दूर करता है।

ठंडी हवाएँ धीरे-धीरे बहने लगती हैं,
आसपास की चुप्प में जैसे हर शोर थमने लगता है,
पर सोफ़े पर लिपटा ये कम्बल, एक सुकून का संदेश लाता है,
हर दिन की भागदौड़ और संघर्ष को पीछे छोड़ता है।

कम्बल की नरमाहट में कुछ ऐसा जादू है,
जो दिल को शांति और मन को आराम देता है,
इसमें लिपट कर हर चिंता, हर दर्द, लहर की तरह बह जाता है,
और बस बाकी रह जाती है तो वह सुकून, जो भीतर से बाहर तक फैल जाता है।

सोफ़े की आरामदायक कुर्सी, और कम्बल का गर्म अहसास,
यहाँ सब कुछ ठहरा हुआ सा महसूस होता है, जैसे वक्त भी थम गया हो,
आसमान में तारे, और हवा की खामोशी,
इन्हें देखकर लगता है, आज़ादी और शांति में कोई सीमा नहीं होती।

कभी-कभी, सोफ़े पर बैठते हुए, उन परसों की यादें ताज़ा हो जाती हैं,
जब माँ की गोदी में इसी कम्बल में लिपट कर सोते थे,
तब का प्यार, वह गर्मी, वह शांति, आज भी कुछ वैसी ही महसूस होती है,
बस, वक्त और हालात बदलते गए, लेकिन कम्बल की वह राहत अभी भी वही है।

कम्बल के नीचे छिपकर, सिर को तकिया बनाकर सो जाना,
यह वह पल है, जब दुनिया से कोई रिश्ता नहीं होता,
वो पल, जब न कोई चिंता, न कोई जिम्मेदारी होती है,
बस होती है तो वही पूरी दुनिया, जो इस एक पल में समाई होती है।

शाम की चुप्प में, इस सोफ़े पर लिपटा कम्बल,
एक ऐसा ठिकाना बन जाता है, जहाँ हर दिन का थकान गायब हो जाता है,
यह कम्बल जैसे किसी कवि की कल्पना का हिस्सा हो,
जो हर दर्द, हर तकलीफ को अपने आंचल में समेट लेता है।

हर रात की तरह, यह कम्बल मुझे अपनी बाहों में समेटता है,
और मैं खो जाता हूँ, उस प्यारी सी नींद में,
जहाँ कोई डर नहीं, कोई ग़म नहीं, बस शांति है,
बस यही तो है वो सुकून, जो शाम को सोफ़े पर कम्बल में पाया जाता है।

आज फिर, जब यह शाम ढल रही है, और ठंडक बढ़ रही है,
मैं सोफ़े पर बैठा हूं, और यह कम्बल मुझे अपनी यादों में सुलाता है,
जैसे एक पुराना दोस्त, जो कभी न छोड़ने वाला हो,
यह कम्बल हर क़दम पर मेरी राह में सुकून लाता है।

--अतुल परब
--दिनांक-19.12.2024-गुरुवार.
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