अंतर्राष्ट्रीय नरसंहार स्मरण दिवस पर कविता-
"ऑशविट्ज़ की यादें"
27 जनवरी का दिन याद रखें,
ऑशविट्ज़ के नरसंहार को न भूलें,
जहां दर्द और आंसू थे हर ओर,
इंसानियत की बर्बादी की थी भरपूर।
💔💔💔
हमने देखे थे जलते चेहरे,
भेदभाव और नफ़रत के साये,
मानवता की हत्या की गई थी वहां,
खून से रंगे थे वहां के साये।
⚰️💀
सोवियत सैनिकों ने मुक्ति दी,
हर कैदी को एक नई आशा दी,
अब हम याद करें उन सभी को,
जिन्होंने सहा था वह अंधकारमय साया।
🕊�✌️
नफ़रत की चिंगारी को बुझाना है,
इंसानियत का दीप जलाना है,
समानता और प्रेम का संदेश देना है,
दुनिया में शांति का पैगाम फैलाना है।
🤝🌍
अर्थ:
यह कविता हमें याद दिलाती है कि 27 जनवरी का दिन ऑशविट्ज़ जैसे नरसंहार शिविर के इतिहास को याद करने का दिन है। यह दिन हम सभी को नफ़रत, भेदभाव और हिंसा के खिलाफ एकजुट होने की प्रेरणा देता है। सोवियत सैनिकों द्वारा ऑशविट्ज़-बिरकेनौ शिविर की मुक्ति ने लाखों पीड़ितों को नया जीवन दिया। हमें यह संकल्प लेना चाहिए कि हम भविष्य में ऐसे नरसंहारों को कभी नहीं होने देंगे और दुनिया में शांति, प्रेम और समानता फैलाने की कोशिश करेंगे।
कविता का संदेश:
नफ़रत को खत्म करो, 💔
शांति और समानता का प्रचार करो 🕊�,
मानवता की रक्षा करो 🤝,
इतिहास से सीखो और प्यार फैलाओ 🌍।
🙏 जय इंसानियत! 🌸
(पिचर्स और इमोजी का संकेत : 💔⚰️🕊�🤝🌍)
--अतुल परब
--दिनांक-27.01.2025-सोमवार.
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