* राज *

Started by कवी-गणेश साळुंखे, January 20, 2015, 10:10:05 PM

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कवी-गणेश साळुंखे

गिरे हैे पत्ते आज शाखसे
जैसे उडे हो परींदे घरोंसे
होता था जहाँ शोरगुल हमेशा
वही बाते होती है खामोशी से
अंधेरे ने छुपाए है राज कुछ ऐसे
जिने डर लगता है उजालेसे...!
कवी-गणेश साळुंखे...!
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Mumbai