वो ख्वाहिशें ही क्या जिनकी चाह ना हो खुदा रास्ता दिखाएँगा अगर कोई राह ना हो।

Started by Shraddha R. Chandangir, February 10, 2015, 02:18:48 AM

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Shraddha R. Chandangir

वो ख्वाहिशें ही क्या जिनकी चाह ना हो
खुदा रास्ता दिखाएँगा अगर कोई राह ना हो।

वाबस्ता उन लोगों से फकत नाम का रहता है
जहाँ मुस्कुराकर झगड़े में इक सुलाह ना हो।

उन गजलों से, उन नजमों से वो शायर भी रूठ जाता है
अगर उसकी शायरी पे कभी वाह ना हो।

वो खुबसूरती किस काम की जो दीदार की मोहताज है
जिसे नकाब मे भी परखने वाली कोई निगाह ना हो।

उस मौलवी की भी दुआ कभी कबूल नही होती
अगर उसकी रूह में अल्लाह ना हो।

संगेमरमर के महलों मे भी वो सुकून नही आएगा
जो किसी अपने के दिल में मेरी पनाह ना हो।
- अनामिका

वाबस्ता - relation
सुलाह- compromise
मौलवी- मुसलमान पंडीत
पनाह- जागा
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