* गहराई *

Started by कवी-गणेश साळुंखे, September 17, 2015, 11:31:57 AM

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कवी-गणेश साळुंखे

मत कर गुरुर ए समंदर
तु आज अपने आप पर
तुझसे जादा गहराई तो है
मेरी इन दो बाहोंके अंदर
जो तुझमें समाया वो डुब गया
और जो मेरी बाहोंमे आया
वो हमेशा के लिए मेरा हो गया.
कवी - गणेश साळुंखे.
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