* ख्वाहिशें *

Started by कवी-गणेश साळुंखे, September 17, 2015, 11:11:37 PM

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कवी-गणेश साळुंखे

ख्वाहिशें तो हजारों है
इस दिल-ए-नादान की
जमींपर रखकर अपने कदम
आसमान को छुने की
पर बंदिशें भी लाखों है
इसीलिए रह जाती अधूरी
कहानी इस दिल-ए-नादान की.
कवी - गणेश साळुंखे.
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