* दिल मेरा *

Started by कवी-गणेश साळुंखे, October 01, 2015, 10:08:28 PM

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कवी-गणेश साळुंखे

हर बार टूटा है दिल मेरा
फिर भी ये बाज नहीं आता
शायद चोट खाए बिन इस
कमबख्त को सुकुन नहीं मिलता.
कवी - गणेश साळुंखे.
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