* चैन और सुकून *

Started by कवी-गणेश साळुंखे, December 12, 2015, 12:33:06 PM

Previous topic - Next topic

कवी-गणेश साळुंखे

हम भी कितने नादान है
रात रातभर उसके लिए जागे
उस अंजान बेफिक्र यार के लिए
जो चैन और सुकून से सोते रहे.
कवी - गणेश साळुंखे.
Mob - 7715070938