* हसरत-ए-आरजु *

Started by कवी-गणेश साळुंखे, January 09, 2016, 11:04:44 PM

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कवी-गणेश साळुंखे

हसरत-ए-आरजु बस इतनी है
इस दिल-ए-नादान की
एक तु मिल जाए हमको कहीसे
फिर ना कोई तमन्ना होगी जिंदगी की.
कवी - गणेश साळुंखे.
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