==* वक्त की मार *== (गजल)

Started by SHASHIKANT SHANDILE, February 29, 2016, 10:27:40 AM

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SHASHIKANT SHANDILE

वक्तकी मारसे मै पनाहगार हो गया
सपने देखकर मै गुनहगार हो गया

न थे मंजिल-ए-सुराग लिखे कहीपर
दिलको अपने ही मै मदतगार हो गया

मोहोब्बत ही बाटी सारी उम्र हमने
जाने मगर क्यू मै बेकरार हो गया

अब न कोई उम्मीद-ए-वफ़ा जिंदगी
भरोसेमंद खंजरही आरपार हो गया

फकत एक आरजू 'शशि' की चाहत हो
इकरार पर मेरे उनका इनकार हो गया
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शशिकांत शांडिले, नागपुर✍
भ्र. ९९७५९९५४५०
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