==* ये भी क्या जीना *==

Started by SHASHIKANT SHANDILE, March 30, 2016, 12:45:35 PM

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SHASHIKANT SHANDILE

जी लू अब सपनो में मै
हकीकत ना रास आती है
तेरी जुदाई का जख्म उठाकर
मिली कुछ तनहाई है

सोचा न था कुछ यु भी होगा
सपना मेरा तो अधूरा है
प्यार का क्या तोहफा मिला है
हरतरफ बस सन्नाटा है

अब न कोई आरजू दिलमे
चाहत की परछाई बची है
जाने क्या सितम कर गई
मोहोब्बत कि जुदाई है

दिल का दर्द सहा न जाए
किस्मत कि रूसवाई है
तुम रूठी तो रूठी दुनिया
तुम्हारी बस परछाई है

छलनी होकर रह गया सीना
ये जीना कैसा जीना है
तुझसे बिछड़कर मिट गया हू
अब तो साँसे गिनना है

अब तो बस साँसे है गिनना
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शशिकांत शांडिले, नागपूर
भ्र. ९९७५९९५४५०
Its Just My Word's

शब्द माझे!