* हद *

Started by कवी-गणेश साळुंखे, May 31, 2016, 12:28:38 PM

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कवी-गणेश साळुंखे

बात हमारी हद की ना कर जालीम
हदमें रहना तो हमने सिखा ही नहीं
तुझसे मोहब्बत भी की,तो सारी हदें तोडकर
तेरा इंतजार भी किया,तु ना मिलेगी ये मालूम होकर
खुदा से भी कुछ माँगा नही,हमने पत्थर समझकर.
कवी - गणेश साळुंखे.
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