* चोट *

Started by कवी-गणेश साळुंखे, November 28, 2016, 10:36:04 PM

Previous topic - Next topic

कवी-गणेश साळुंखे

दस्तूर ही कुछ अलग होता है
इसका रिवाज भी अलग होता है
जो करता है बेपनाह मोहब्बत किसीसे
अक्सर चोट उसीसे खाता है.
कवी - गणेश साळुंखे.
Mob - 7715070938