* खुदा *

Started by कवी-गणेश साळुंखे, May 01, 2017, 01:04:57 AM

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कवी-गणेश साळुंखे


काश जान पाता खुदा
मौहब्बत तु भी कभी
होती तुझे भी चाहत
किसीको पानेकी कभी

तु भी करता मिन्नते
और मांगता मन्नते कभी
हर रोज दूवाओंमे उठते
तेरे भी हाथ कभी

सोते जागते देखता ख्वाब
अपने महबुब के कभी
तु भी महसुस करता
पलपलकी घुटन कभी

तु भी करता इंतजार
और वो न आता कभी
फिर दिल टुटता तेरा
और तकलीफ होती तुझेभी

हरपल महसुस होती कमी
अपने दिलबर की जबभी
तु भी तडपकर उठता
और आँसू बहाता कभी

तब पता चलता तुझे भी
गम होता क्या है
दर्द होता क्या है
जान पाता खुदा तु भी

सिसकीयोंभरी रातोंका जागना
और करवट बदलबदलकर रोना
लम्हा लम्हा घुटघुटकर जीना
जान पाता खुदा तु भी
तो यारसे यार ज्युदा
भूलसे भी ना करता कभी.
कवी - गणेश साळुंखे.
Mob - 7715070938
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