* महफिल *

Started by कवी-गणेश साळुंखे, November 27, 2017, 10:25:19 PM

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कवी-गणेश साळुंखे

*सजी थी महफिल दिवानोंकी*
*बातें हो रही थी मौहब्बत की*
*जब बात निकली वफाकी*
*तो मानों इस तरह खामोशी छायी*
*जैसे जानही चली गयी महफिलकी*
*कवी - गणेश साळुंखे*
*📱- 8668672192*