होशियारी मोहताज हैं दिन के उजाले की!

Started by Shraddha R. Chandangir, May 27, 2018, 10:16:57 PM

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Shraddha R. Chandangir

ख़ुमारी हैं तब तक,  होठों से लगाना हैं
बाद फिर सिगरेट को, कुचला ही जाना हैं।

होशियारी मोहताज हैं, दिन के उजाले की
रात की आग़ोश में, हर शख़्स  दिवाना हैं।

इसलिए  भी उसको, ख़्वाहिश  हैं पाने की
की कुछ तो हो ऐसा, जो हँस के गवाना हैं।

उससे नराज़गी भी, इक चालाकी हैं मिरी
उसके तरीक़े से मुझे, उसी को मनाना हैं।
~ श्रद्धा
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कवि - विजय सुर्यवंशी.

आपको पढकर.. गझल से रुबरु हो गये.... keep it up