उनसे अब ना शिकवा गिला

Started by कवी अमोलभाऊ शिंदे पाटील, December 25, 2018, 06:54:42 AM

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कवी अमोलभाऊ शिंदे पाटील

*पुन्हा एकदा हिंदी कविता आपल्या भेटीसाठी*

*शीर्षक.उनसे अब ना शिकवा गिला*

उसने भी काटे बोये थे
जो खून भरा पौधा मिला
जो अपने ना हो सके
उनसे अब ना शिकवा गिला

राख हो गये सपने अपने
उन्हें याद करके अब तो
दूसरों का हाथ थामकर बोले
पागल पीछा छोड़ दे अब तो

मैं भी कितना बदनसीब
पागल उन्होंने ही किया
दूसरों की और बात थी
उन्होंने मुझे ही इल्जाम दिया

इल्जाम भी लगाने की हद थी
खून के आँसू निकल रहे थे
जिस रब ने मिलाया था उनसे ही
मेरे मरने की दुआ कर रहे थे

✍🏻(कवि.अमोल शिंदे पाटिल).
मो.९६३७०४०९००.अहमदनगर

Vaibhav Talekar

भावा तूझी कविता छान आहे.🤘..
एखादी मराठीत पन कर..👉 तीच तर आपली शान आहे ..😘