दीदार तेरा जबसे हुआ है

Started by sachinikam, May 28, 2019, 01:49:49 PM

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sachinikam


दीदार तेरा जबसे हुआ है

दीदार तेरा जबसे हुआ है
सोयी नही है तबसे निगाहें
प्यारही मंजील प्यारही राहें
लगजा गलेसे खोलके बाहें ॥ ध्रु ॥

तुमसा हसीन ओ नाजनीन
देखा नहीं मैंने पहले कभी
जोहराजबीन हुआ यकीन
ना हो बयान लब्ज़ो में सभी
सुहानी जमीन आसमान रंगीन
प्यारकी बरखा हुई तभी
भीगा ये मन भीगा बदन
महकी हवामें मदहोशी अभी
रूक रूकके चलने लगा ये समा है
दीदार तेरा जबसे हुआ है ॥ १ ॥

मनको लुभा गयी तेरी सादगी
शुरू हो गयी अब ये दिल लगी
बेखुदी कहो या कहो दीवानगी
लिखदी तेरे नाम सारी जिंदगी
आँखे मूंदी हो या हो खुली
तुमको ही देखूँ मैं हर कहीं
खुशकिस्मती मेरी आखिर जगी
तोहफा प्यारका लायी मेरी बंदगी
पैरों तले चलने लगा आसमान है
दीदार तेरा जबसे हुआ है... ॥ २ ॥

दिलसे निकलके दिलमे उतरके
आंखोंसे छलके अरमान हलके
भीगीसी पलकें रखना संभलके
बाहोंमे चलके गमको निगलके
खुशियोंसे महके रहना साथिया
पहली पसंद तूही सोना माहिया
सारा जहाँ गर हो जायेगा ख़फ़ा
ना होंगे जुदा करेंगे तुमसे वफ़ा
ना कोई शिकवा ना कोई गिला है
दीदार तेरा जबसे हुआ है... ॥ ३ ॥
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कवी: सचिन निकम, पुणे. कवितासंग्रह: गीतगुंजन.
sachinikam@gmail.com, ९८९००१६८२५
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