हम तुम

Started by शिवाजी सांगळे, July 04, 2019, 08:58:53 AM

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शिवाजी सांगळे

हम तुम

तुम भी चुप रहे तब हम ही बोलते रहे
हम जो चुप रहे तब तुम मुस्कुराते रहे

तय था कुछ अंजाम इस खामोशी का
चुप्पी के इस खेल में फासले बढते रहे

मंजिल ओर रास्ते एक तय तो नेक थे
फिर भी अलग अलग क्यूँ चलते रहे ?

रहते है दिनभर जो गुमनामी मे कहां
सितारे वह रात में फिर टिमटिमाते रहे

ठुकराया जिन्हें उम्र भर यहां लोगोंने
पाते ही कामयाबी शिव को बुलाते रहे

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