वसुधैव कुटुंबकम

Started by sachinikam, April 09, 2020, 12:33:40 PM

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वसुधैव कुटुंबकम         (कवी: सचिन निकम, गीतगुंजन)

एक है जमीन एक आसमान
रचें मिलके हसीन दास्तान
पास रहकेभी क्यूँ दूरियाँ
यह सरहदें यह मजबूरियाँ
देखलो पूकारके एकबार
बढ़ायेंगे हात दोस्त सौबार
होगा नही कोई भेद
नही होगा कैसा खेद
मिलेंगे सूर साथ हमारे
एक है सब हम
एक है सब हम
गायेंगे "वसुधैव कुटुंबकम"