दास्तान

Started by शिवाजी सांगळे, February 12, 2021, 12:48:44 PM

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शिवाजी सांगळे

दास्तान

खत्म सी होने लगी अब आरजू जीने की
क्या बयां करूं दास्तान-ए-दर्द पुराने की

बात सीधी हैं, होंगे ज़ाहिर घाव जिस्म के
समझेगा कौन गहराई रूह के निशाने की

नये रास्ते लोग नये मिलतें है जभी कभी
साथ कैसे दे उनको बात है ये सोचने की

आसान कभी वक्त कभी मुश्किल गुज़रा
जुर्रत जो की थी तभी उससे उलझने की

दौड़ रही हैं ज़िन्दगी ये खुदकी रफ़्तार में
कहां ठहरेंगी खोज अजनबी ठिकाने की

©शिवाजी सांगळे 🦋papillon
संपर्क: +९१ ९५४५९७६५८९
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