सूना सपना

Started by शिवाजी सांगळे, February 18, 2021, 03:24:36 PM

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शिवाजी सांगळे

सूना सपना

सूनी आँखों का सपना अब सूना सा क्यूँ है
आसमान तले आँगन भीना भीना सा क्यूँ है

बात चलती हैं ईटों से बनाए नये शहरों की
गांव में पत्थर दहलीज का पुराना सा क्यूँ है

पीता था दूध बहुत कभी बचपन जवानी में
तलब बुझाने अब के भरा पैमाना सा क्यूँ है

गुंजती थी चहल पहल कभी यहा रात दिन
सूनी ये सडकें चौराहों पर विराना सा क्यूँ है

अब फिसलती है रेत पुरानी इन मुठ्ठीयों से
रेतीले इन पैरोंतले साया पहचाना सा क्यूँ है

सपना सूनी आँखों का सूना सूना सा क्यूँ है
देखने फिरसे सपने मन ये दिवाना सा क्यूँ है

©शिवाजी सांगळे 🦋papillon
संपर्क: +९१ ९५४५९७६५८९
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