ईक ही जिंदगी थी

Started by ranjit sadar, April 11, 2021, 04:31:58 PM

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ranjit sadar

ईक ही जिंदगी थी और
आसमा चुम आये हम
ये शरीर अमर करके सो
यारो जन्नत घुम आये हम

ईधर उधर अप्सराये पैर
पायल बजा ती छमछम
इक ही जिंदगी थी और
लिये है हमने सो जनम

बीस साल कि उमर मे
ज्ञानी बनाई मैने कलम
जखमी थी गरिबी मैने
लगाया उसपे मलहम

पुजा नाम कि थी प्रेमी
पागल करती थी सलम
छोड दिया है उसे आगे
बढाया है मैने मेरा कदम

कवी रंजित आंबादास सदर.