बारीश और हवा

Started by ranjit sadar, April 13, 2021, 08:10:24 AM

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ranjit sadar

थोडीसी हलचल और शांती
थोड़ीसी हवा बूँदो की क्रांती
जोरदार तुफान धुलकी भ्रांती
और सावन टपक के आता है

लोगो का छुपना उस मे प्यार
किसी की नफरत की  पुकार
मिट्टी कि भिगे घरो कि दिवार
पाणी इधर उधर से जाता है

कितना स्वच्छ दिखता पान
खेत अटके किसानो के प्रान
एकता से चल पाणी देता ज्ञान
मेरा उससे भी कुछ नाता है

जोर से आती सुंदर आवाज
खेत मे खुले है बीजे के राज
पहाडो को होता खुद पे नाज
और मेरा दिल जोर लहराता है

हो गई है अब यारो मेरे शाम
आसमा करे खुल के प्रणाम
मेघा बारीश  हैै इसका नाम
कोयल संघ गीत ये गाता है .

कवी रंजित अंबादास सदर.

Atul Kaviraje



     रंजित सर, " बारिश और हवा " इस जानदार कविता में आपने, बरखा रानी, एवं उसे बहाने वाली हवा का बडे ही समझदारी से यथार्थ वर्णन किया है. बारिश की बुंदा-बांदी, जोर का तुफान एवं उफान, उससे होने वाला नुकसान, किसानों के देवता,एवं बहुत सारी उदाहरणो के साथ, आपने बरसात को जताया है.

     सच ही है, हमारा सारा जीवन इस आसमान से बहते पानी पर ही निर्भर है. वो ही हमारा जीवन है. अन्न-दाता है, वैसे ही बहती हवा जो हमारे जिने की स्रोत है. इन दोनो के बिना इन्सान का जीवन अधुरा है.
इन दोनो का हमें सदैव ही इंतजार रहेगा. आपकी कविता अच्छी लगी.

     हे बरखा, तू बरसती आ
     हवा के झुलों पर झुलती आ
     नजरो को 'तेरीही आस है,
     दिल की प्यास बुझाती जा.

     सदियों से इंतजार है तेरा
     सदियों तक रहेगा आगे भी
     इन्सानो के दिल में बनाकर जगह,
     खुशियो के क्षण देती जा.

-----श्री अतुल एस परब(अतुल कवीराजे)
-----शुक्रवार-११.०६.२०२१-शुक्रवार.